Sunday, June 28, 2015

अब, मां को बताने पर शर्म कैसी।

इस चिट्टी में, अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले की चर्चा है जिससे समलैंगिक लोगों के बीच शादी को, कानूनी मान्यता दे दी गयी है।



संसार में, समलैंगिग रिश्ते अच्छी नज़र से नहीं देखे जाते हैं। समाज उन्हें नहीं स्वीकारता। किसी भी सन्तान के लिये, अपनी मां को यह बताना बेहद कठिन है कि वह समलैंगिक है।

कुछ साल पहले मेरी मुकालात ऑस्ट्रेलिया उच्च न्यायालय के न्यायाधीश माईकिल किर्बी से हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि वे समलैंगिक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक उनकी मां जिन्दा रहीं उन्होने इस बात को गुप्त रखा, केवल उनके मरने के बाद उसको जग जाहिर किया। मेरे उनसे पूछने पर कि उन्होंने ऐसा क्यों किया उनका जवाब था कि,

‘मै जो हूं, मेरी जो पसन्द है वह ईश्वर के कारण है। इसमें मेरा कोई दोष नहीं। मेरी मां यह नहीं समझ पाती। उन्हें बहुत दुख होता और वे अपने को ही दोषी ठहरातीं। मैं उन्हें दुख नहीं देना चाहता था इसलिये इस बात को गुप्त रखा। आज वे नहीं हैं इसलिये सही बात को छुपाने का कोई कारण नहीं है।‘
किसी मां के लिये भी, इस बात को स्वीकारना बेहद कठिन है कि उसकी सन्तान समलैंगिक है।

जाने माने अंग्रेजी के लेखक विक्रम सेठ, अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायमूर्ति लीला सेठ  के पुत्र हैं। उन्हें समलैंगिक रिश्ते पसन्द हैं। न्यायमूर्ति लीला सेठ अपनी जीवनी  'On Balance' में लिखती हैं कि एक बार विक्रम ने पूछा कि क्या विदेश से आ रही उसकी महिला मित्र, उसके साथ, उसके कमरे में रुक सकती है। 


न्यायमूर्ति लीला सेठ ने कहा कि उसकी महिला मित्र उसके साथ न रुक कर, उसकी बहन के साथ रुक सकती है। लेकिन उसका कोई अन्य पुरुष मित्र उसके साथ रुक सकता है। इस पर विक्रम का जवाब था कि तब तो आप (लीला सेठ) उसे पुरुषों के हाथ में दे रही हैं। उस जवाब पर उन्हें आश्चर्य हुआ। लेकिन बात-चीत पर तनाव मे कारण इसे वहीं पर समाप्त कर दिया। वे आगे लिखती हैं कि,
'At the time I didn’t realise that Vikram was bisexual. This understanding came to me later and I found it hard to come to terms with his homosexuality. Premo [Vikram's father] found it even afraid that someone might try to exploit him because of it.'
मुझे उस समय तक यह अहसास नहीं था कि विक्रम उभयलिंगी है। मुझे यह बात देर में समझ में आयी। मुझे, विक्रम की समलैंगिकता को स्वीकारने में मुश्किल पड़ी। विक्रम के पिता घबराते थे कि कुछ लोग इसका नायज़ाज फायदा न उठायें। 


मैं समलैंगिक, ट्रान्स्ज़ेन्डर लोगों से सहानुभूति रखता हूं। मेरे विचार से ईश्वर ने उन्हें ऐसे ही बनाया। वे जैसे हैं, हमें उन्हें वैसे ही स्वीकारना चाहिये। 

मैंने समलैंगिक रिश्तों के बारे में दो चिट्ठियां 'चार बराबर पांच, पांच बराबर चार, चार…' और 'आईने, आईने, यह तो बता – दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन' लिखीं। पहली चिट्ठी पहेली के रूप में पूछी गयी वास्तव में यह एक वास्तव में यह दूसरी चिट्ठी की प्रस्तावना थी।
 

ट्रान्स्ज़ेन्डर लोगों के समर्थन में पहली चिट्ठी 'Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री' नाम से लिखी। इसमें एक टीवी के विज्ञापन की ओछी बात की चर्चा है। फिर गज़ल नामक यूवक की, युवती बनने की साहसी कथा 'मैं लड़के के शरीर में कैद थी' नामक चिट्ठी में लिखी। 
ग़ज़ल, जो २४ साल पुरुष शरीर के अन्दर कैद रही, शल्यचिकित्सा से आज़ाद हुई।

२६ जून २०१५, अमेरीकी सर्वोच्च न्यायालय ने,  ऑबरगेफेल बनाम हॉज़ (Obergefell Vs. Hodge) में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। न्यायालय के अनुसार  एकलिंगी दम्पति (same-sex couple) को शादी करने का अधिकार है और यह अधिकार उन्हें अमेरिकी संविधान के चौदवें संशोधन से मिला है। यह संशोधन बहुत कुछ हमारे संविधान के चौदवें अनुच्छेद की तरह है। 


अब, मां को बताने पर कैसी शर्म। लेकिन समाज को, जिसमें मां भी है, इस बात को स्वीकारने में अभी बहुत समय है।


उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।


यौन शिक्षा पर लिखी मेरी अन्य चिट्ठियां जिनका जिक्र इस चिट्ठी में नहीं है

About this post in Hindi-Roman and English
This post in Hindi (Devanagari script) talks about the latest decision of the US Supreme Court in Obergefell Vs Hodges, legalising same-sex marriages.

Hindi (devnaagree) kee is chtthi mein, amerikee sarvocch nyayalay ke nveentam nirnay Obergefell Vs Hodges kee  charcha  hai. is nirnay ke dvaraa ek ling ke logon ke beech kee gayI shaadee ko kanooni manyta de dee gaye hai.
 
सांकेतिक शब्द

, , Sex education, दर्शन, यौन शिक्षा, विचार,

1 comment:

  1. आपने लिखा है -

    किसी मां के लिये भी, इस बात को स्वीकारना बेहद कठिन है कि उसकी सन्तान समलैंगिक है।

    शायद. परंतु लोग अब शिक्षित (सही मायने में) हो रहे हैं. एलन पीज की शोध-पूर्ण किताब - व्हाई मैन लाई एंड वीमन क्राई - पढ़ने से पहले मैं भी ऐसा ही सोचता था, परंतु इस किताब को पढ़कर शिक्षित - जी हाँ, "शिक्षित" होने के बाद मेरे विचारों में भी परिवर्तन आया है.
    दरअसल, प्रकृति में जन्म समय की कुछ त्रुटियों (?) {जैसे कि - मेरा हृदय बायीँ ओर की बजाय दाँयी ओर है - } के कारण इस तरह की समस्याएँ (?) होती हैं, और अब यह अच्छी बात है कि समस्याओं को समाज धीरे से ही सही, स्वीकार रहा है.
    आज ही समाचार आया है कि राजस्थान में ट्रांसजैंडरों को कॉलेजों में आउटराइट प्रवेश मिलेगा.

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