Monday, November 19, 2007

ऑस्ट्रियन एयरलाइनः बर्लिन-वियाना यात्रा

भारत से वियाना तक की फ्लाइट ऑस्ट्रियन एयर लाइन की थी। प्लेन सही समय पर उड़ा। मुझे आगे की सीट मिली थी। एक महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ आयी। उसने कहा कि मैं उसे यह सीट दे दूं। आगे की सीट में बैठने का यह फायदा है कि बच्चों के लिये वह क्रैडल लग जाती है। जिस पर उन्हे लिटाया जा सकता है। मैंने मान लिया पर परिचायिका ने यह नहीं करने दिया क्योंकि आगे पहले से ही एक महिला बच्चे के साथ बैठी थी और ऊपर केवल एक ही अतिरिक्त ऑक्सीजन मॉस्क था दो नहीं। उस महिला को पुनः अपनी जगह वापस जाना पड़ा। किसी भी अन्य यात्री ने जिसकी सीट के सामने बच्चे के लिये क्रैडल लग सकता था, उस महिला के साथ सीट बदलने से मना कर दिया। वह कुछ मायूस हो गयी। इससे उसे रास्ते में कुछ तकलीफ तो जरूर हुई होगी पर मैं कुछ कर नहीं सकता था।

परिचारिकायें लाल परिधान पहने थीं। युवतियां लाल स्कर्ट, लाल बेल्ट, लाल या सफेद ब्लाउज, लाल जैकेट, लाल कोट, लाल स्टॉकिंग, यहां तक की लाल जूते पहने थीं पर गले में स्कार्फ आसमानी रंग का था। यही हाल युवकों का भी था। वे हमसे तो अंग्रेजी में बात करते थे पर आपस में किसी और भाषा में बात करते थे। मैंने एक परिचारिका से पूछा कि क्या वह जर्मन में बात कर रही है। उसने कहा
'हां। पर हमारा उच्चारण जर्मन के कुछ भिन्न है पर वर्तनी, व्याकरण बाकी सब वही है।'
मैंने जवाब दिया डांके शॉन (आपको बहुत धन्यवाद)। वह मुस्कराकर बोली,
'लगता है आपको जर्मन आती है।'
मैंने कहा, मैं जर्मनी जा रहा हूं इसलिये कुछ शब्द सीख लिये हैं।

मेरे बगल की महिला इटली जा रही थी और जो महिला मुझसे सीट बदलना चाहती थी वह स्पेन जा रही थी। वे हरियाणा के किसी गांव की लग रही थी। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। वे घबरा रही थी। मैंने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है मैं मदद करूंगा। मैंने वियना में उन्हें उस जगह तक पहुंचाया जहां से उन्हें अपनी, अगली फ्लाइट पकड़नी थी। हांलाकि बाहर निकलते समय एक व्यक्ति खड़ा था जो टिकट देखकर लोगों की सहायता कर रहा था।

मैं बर्लिन जाने के लियें, हाथ का सामान चेक करने के लिये देने लगा। एक व्यक्ति ने मुस्कराकर पूछा कि क्या लैपटॉप हैं? मैंने कहा नहीं। उसने कहा कि क्या नोटबुक है ? मैंने कहा
'नहीं, इसमें मेरे कपड़े हैं।'
उसे बहुत आश्चर्य हुआ, मानो कह रहा हो कि क्या कोई भारतीय बिना लैपटॉप के यात्रा कर सकता है। शायद सूचना प्रौद्योगिकी, भारतीयों की पहचान बन गयी है।

वियाना हवाई अड्डे और बर्लिन में मुझे एक परेशानी हुई पर उसका कारण मैं खुद था न कि वियाना हवाई अड्डा या बर्लिन शहर - यह अगली बार।

बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन

5 comments:

  1. रोचक तरीके से लिखा है। हम पढ रहे है मन लगाकर और रमाकर। आगे जल्दी लिखे।

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  2. " मानो कह रहा हो कि क्या कोई भारतीय लैपटॉप के यात्रा कर सकता है। शायद सूचना प्रौद्योगिकी, भारतीयों की पहचान बन गयी है।" पढकर अच्छा लगा।
    यात्रा विवरण रोचक है, जारी रखें।

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  3. कहीं वाक्य रचना इस तरह तो नही उन्मुक्त जी -
    क्या कोई भारतीय बिना लैपटॉप के यात्रा कर सकता है .

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  4. हाँ जो अरविंद मिश्रा जी ने कहा, मुझे भी वही लगा था | शायद टाइपिंग mistake हो |
    सामान्यतः europe में कोई दिक्कत नही आती है चाहे कहीं भी चले जाओ |
    अगली कड़ी का इंतज़ार है |

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  5. धन्यवाद, 'बिना' शब्द छूट गया था। अब जोड़ दिया है।

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