Saturday, August 18, 2007

विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न

विज्ञान कहानियों में पहली लोकप्रिय एवं प्रसिद्घ कहानी मैरी गॉडविन ने 'फ्रैंकेस्टाइन' नाम से लिखी है। इसकी कहानी मैंने अपनी चिट्ठी 'विज्ञान कहानियों के प्रिय लेखक' पर लिखी है पर विज्ञान कहानियों को सम्मान दिलवाने वाले इनके जनक थे, फ्रांसीसी लेखक जुले ग्रैबियल वर्न।
जुले वर्न

जुले का जन्म दिनांक ८-२-१८२८ को नॉंत (Nantes) फ्रांस में हुआ था। जुले ने अपने बचपन के दिन, ल्वार (Loire) नदी के किनारे बिताये। यहां वे अक्सर जहाजों को आते-जाते हुए देखा करते थे और इसने उनके जीवन में बाद में बड़ा असर डाला।

कहा जाता है कि ११ साल की उम्र में जुले एक केबिन बॉय बन कर पानी के जहाज पर विदेश जाना चाहते थे। उनके पिता ने उनके जाने से पहले ही उन्हें पकड़ लिया और जुले वा उनके भाई को, इन सबसे दूर, बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने भेज दिया गया। उनके पिता एक सफल वकील थे। वे जुले को वकील के रूप में देखना चाहते थे। १८ साल की उम्र में, जुले को कानून पढ़ने, पेरिस भेज दिया गया। उसे कानून कभी पसंद नहीं आया और वे कहानियां लिखने लगे। जब उनके पिता को यह मालुम चला तो उन्होंने उन्हें खर्च देना बन्द कर दिया। जुले को अपना खर्च चलाने के लिये, स्टॉक-ब्रोकर बनना पड़ा। इसमें वे सफल तो हुए पर यह काम भी उन्हें पसंद नहीं आया।

इसी बीच, पेरिस में उनकी मुलाकात लेखक अलेक्जॉंद्र डिउमा (Alexandre Dumes) और विक्टोर इउगो (Victor Hugo) से हुयी जिन्होंने उन्हें अच्छे लेखन के लिये बहुत सारी टिप्स दी और वे लेखन में जुट गये। वे रोज ६ बजे उठकर बच्चों की पत्रिकाओं के लिये लेख लिखते और १० बजे सूट पहन कर स्टाक-एक्सचेंज चले
जाते थे।
जुले की शादी १८५७ में हुयी। १८६२ में उन्होंने, अपना पहला उपन्यास Five Weeks in a Balloon लिखा। जुले ने इसे हेटज़ल (Jules Hetjel) नाम के प्रकाशक को दिया। उसे यह पुस्तक बहुत पसन्द आयी। इस पुस्तक के प्रकाशन ने जुले को न केवल प्रसिद्घि, पर पैसा भी दिलवाया। यह पुस्तक अपने समय में सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक बनी। हेटज़ल ने जुले के साथ एक संविदा की। इसमें जिसके अन्दर, जुले को हर साल कम से कम दो पुस्तकें लिखनी थीं पर उन्हें अच्छे पैसे भी मिलने थे। यह संविदा जीवन भर के लिये थी और इस कारण उन्हें अपने जीवन में पैसे की कभी कमी नहीं रही।

गुब्बारे में पांच सप्ताह

जुले की, दूसरी पुस्तक Paris in the 20th Century थी, जो कि उन्होंने १८६३ में लिखी पर उसे अपने एक
लॉकर में बन्द कर दी। यह पुस्तक उनके पौत्र को २०वीं शताब्दी में मिली और यह १९९४ में प्रकाशित हुयी। उनकी कुछ और प्रसिद्घ पुस्तकें हैं,
  • गुब्बारे में पांच सप्ताह (Five weeks in a balloon)
  • पृथ्वी के केन्द्र की यात्रा (Journey to the Center of the Earth)
  • पृथ्वी से चन्द्रमा तक ( From the Earth to the Moon)
  • समुद्र दुनिया की रोमांचकारी यात्रायें (Twenty Thousand Leagues Under the Sea)
  • चन्द्रमा के चारों तरफ (Around The Moon)
  • अस्सी दिन में दुनिया की सैर (Around The World in 80 days)
  • धूमकेतु पर ( Off On A Comet)

जुले वर्न, कहानी का ताना-बाना बुनने में माहिर थे। उनकी कहानियों में भौगोलिक, वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग की बातों का उम्दा तरीके से मिश्रण रहता था। वे जाने-माने तकनीकी या वैज्ञानिक तथ्यों से, आगे भविष्य की बात, कुछ इस तरह से करते थे कि अविश्वसनीय चीजें भी संभव और विश्वसनीय लगती थीं। यही कारण था कि वे पाठकों को अपनी पुस्तकों की तरफ आकर्षित करते थे।

उनकी कहानियों में, भविष्य में क्या होगा, इसका पहले से ही वर्णन था। उन्होंने टी.वी. के बारे में, रेडियो के आविष्कार के पहले ही बता दिया था। उन्होंने इसका नाम फोनो टेलीफोटो रखा था। राइट बन्धुओं के उड़ने के
५० साल पहले उन्होंने अपनी किताबों में हेलीकाप्टर का जिक्र किया था। आप यदि उनकी पुस्तकों को पढ़ें तो उसमें सबमेरीन, हवाई जहाज, एयर कंडीशन, गाइडेड मिसाइल और टैंक का वर्णन है।
जुले वर्न, अपनी कहानियों के जीव जन्तुओं के साथ

उनकी पुस्तक समुद्र दुनिया की रोमांचकारी यात्रायें में कैप्टन नीमो की सबमैरीन का नाम नौटिलस (Nautilus) था और वह समुद्र से प्राप्त की गयी बिजली से चलती थी। जब अमेरिका ने अपनी पहली परमाणु सबमैरीन बनायी तो उसका नाम भी नौटिलस रखा। लीग दूरी नापने का पैमाना है और एक लीग लगभग तीन मील के बराबर होता है।

जुले, बाद में, पेरिस से आमिएं (Amiens) चले गये और अपना सारा जीवन उसी शहर में बिताया। उनकी अधिकतर पुस्तकें वहीं लिखी गयी हैं। उनकी मृत्यु दिनांक २४ मार्च १९०५ में हुयी। उनकी मृत्यु के बाद, पेरिस के अखबारों कुछ इस तरह से श्रद्धांजली दी गयी,

'The old story teller is dead. It is like passing of Santa Claus.'


जुले वर्न से प्रभावित हो कर, कुछ लेखकों ने हिन्दी हिन्दी में विज्ञान कहानियां लिखीं है। इसके बारे में आप यहां पढ़ सकते हैं।
जुले वर्न और जुले वर्न अपनी कहानियों के कुछ जीव जन्तुओं के साथ का चित्र विकीपीडिया से है और ग्नू मुक्त प्रलेखन अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित हैं।

सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना।। कॉन-टिकी अभियान के नायक - थूर हायरडॉह्ल।। कॉन-टिकी अभियान।। स्कॉट की आखिरी यात्रा - उसी की डायरी से

5 comments:

  1. उन्मु/क्तb जी बहुत धन्य0वाद इन जानकारियों के लिए । ये सब पढ़कर भारतीय भाषाओं में विज्ञान लेखन की दशा पर दुख होता है ।

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  2. विज्ञान कथाओं से जुडी पोस्ट देखकर खुशी हुई। बधाई स्वीकारें। वैसे नाचीज ने भी इस क्षेत्र में कुछ काम किया है। आप यदि चाहें तो मेरी रचनाएं मेरे ब्लाग "मेरी कलम" (http://z-a-r.blogspot.com)पर देख सकते हैं।

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  3. आपका चिट्ठा पढ़कर अपने व बच्चों के बचपन में पढ़ी इन पुस्तकों की याद आ गई । अच्छा लगा पढ़कर ।
    घुघूती बासूती

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  4. Mai aapkaa blog padhtee rehtee hun. Naihar kahanee samapt kar dee hai...zaroor padhiyegaa. Iske aage aapkee dee salah dhyan me rakhungee !!Asalme mujhe wo shurume samajh nahee aayee thee!!Mere blog administrator ne baat sanjhaayee to samajh aayee...kshamaprarthi hun!
    Waise aapka blog padhneme maza aata hai!

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  5. Unmuktjee,
    Aapke comment ke liye bohot dhanyawad.Hindi blog/ya English/Marathi aadi blogs ke mamleme mai anabhidnya hu.Blog administrator ki sahaytase shuru kiya.Ab jaake aapkee baat samajh aayee.Phirse ekbaar kshama chahtee hu.
    aapko e-mail bhejnekee kaafee koshish kee lekin asafal rahee.

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