Monday, August 13, 2007

दहेज संबन्धित कानून

(इस बार चर्चा का विषय है दहेज संबन्धित कानून। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)


dowry prhibition w...


दहेज बुरी प्रथा है। इसको रोकने के लिये दहेज प्रतिषेध अधिनियम १९६१ बनाया गया है पर यह कारगर सिद्घ नहीं हुआ है। इसकी कमियों को दूर करने के लिये फौजदारी (दूसरा संशोधन) अधिनियम १९८६ के द्वारा, मुख्य तौर से निम्नलिखित संशोधन किये गये हैं:
  • भारतीय दण्ड संहिता में धारा ४९८-क जोड़ी गयी;
  • साक्ष्य अधिनियम में धारा ११३-क, यह धारा कुछ परिस्थितियां दहेज मृत्यु के बारे में संभावनायें पैदा करती हैं;
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम को भी संशोधित कर मजबूत किया गया है।
पर क्या केवल कानून बदलने से दहेज की बुराई समाप्त हो सकती है। - शायद नहीं। यह तो तभी समाप्त होगी जब हम दहेज मांगने, या देने या लेने से मना करें। उच्चतम न्यायालय ने भी १९९३ में, कुण्डला बाला सुब्रमण्यम प्रति आंध्र प्रदेश राज्य में कुछ सुझाव दिये हैं। न्यायालय ने कहा,
'Laws are not enough to combat the evil. A wider social movement of educating women of their rights, to conquer the menace, is....needed more particularly in rural areas where women are still largely uneducated and less aware of their rights and fall an easy prey to their exploitation.....
It is expected that the courts would deal with such cases in a more realistic manner and not allow the criminals to escape on account of procedural technicalities or insignificant lacunae in the evidence as otherwise the criminals would receive encouragement and the victims of crime would be totally discouraged by the crime going unpunished. The courts are expected to be sensitive in cases involving crime against women. The verdict of acquittal made by the trail court in this case is an apt illustration of the lack of sensitivity on the part of the trial court.'
दहेज की बुराई केवल कानून से दूर नहीं की जा सकती है। इस बुराई पर जीत पाने के लिये सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र में, जहां महिलायें अनपढ़ हैं और अपने अधिकारों को नहीं जानती हैं। वे आसानी से इसके शोषण की शिकार बन जाती हैं।. . . .
न्यायालयों को इस तरह के मुकदमे तय करते समय व्यावहारिक तरीका अपनाना चाहिये ताकि अपराधी, प्रक्रिया संबन्धी कानूनी बारीकियों के कारण या फिर गवाही में छोटी -मोटी, कमी के कारण न छूट पाये। जब अपराधी छूट जाते हैं तो वे प्रोत्साहित होते हैं और आहत महिलायें हतोत्साहित। महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमे तय करते समय न्यायालयों को संवेदनशील होना चाहिये।
इस मुकदमे में परीक्षण न्यायालय ने दोषी को छोड़ दिया था। यह दर्शाता है कि न्यायालय संवेदनशील नहीं हैं।

उच्चतम न्यायालय का कथन अपनी जगह सही है पर मेरे विचार से दहेज की बुराई तभी दूर हो सकती है जब,
  • महिलायें शिक्षित हों; और
  • आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों।
इसके लिये, समाज में एक मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है जिसमें महिलाओं को केवल यौन या मनोरंजन की वस्तु न समझा जाय- न ही बच्चा पैदा करने की वस्तु।

अगली बार - काम करने की जगह पर यौन उत्पीड़न।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम।। विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में।। यौन अपराध।। बलात्कार परीक्षण - साक्ष्य, प्रक्रिया।। दहेज संबन्धित कानून

2 comments:

  1. अच्छी जानकारी दी आपने।

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  2. Domestic violence and dowry kisi bhi mahila ko puri zindgi "Noch" Noch kr khata hea. Purush pardhan desh( purush sangthn varg) iske liye zimewar hea.

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