Saturday, December 16, 2006

हरिवंश राय बच्चन: ईमरजेंसी और रुडिआड किपलिंग की कविता का जिक्र

हरिवंश राय बच्चन
भाग-१: क्या भूलूं क्या याद करूं
पहली पोस्ट: विवाद
दूसरी पोस्ट: क्या भूलूं क्या याद करूं

भाग-२: नीड़ का निर्माण फिर
तीसरी पोस्ट: तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के अध्यापक
पांचवीं पोस्ट: आइरिस, और अंग्रेजी
छटी पोस्ट: इन्दिरा जी से मित्रता,
सातवीं पोस्ट: मांस, मदिरा से परहेज
आठवीं पोस्ट: पन्त जी और निराला जी
नवीं पोस्ट: नियम

भाग-३: बसेरे से दूर
दसवीं पोस्ट: इलाहाबाद से दूर

भाग -४ दशद्वार से सोपान तक
ग्यारवीं पोस्ट: अमिताभ बच्चन
बारवीं पोस्ट: रूस यात्रा
तेरवीं पोस्ट: नारी मन
यह पोस्ट: ईमरजेंसी और रुडिआड किपलिंग की कविता का जिक्र

यदि किसी के व्यक्तित्व का सही आंकलन करना है तो उसे मुश्किल के समय पर देखें न कि खुशहाली के समय पर। अपने देश काले समय का दौर आया: १९७५-७७ का समय। यह देश के लिये मुश्किल का समय था। लोगों को सही आंकलन, उस समय उनके बर्ताव से किया जा सकता है। इस समय कई बुद्धिजीवियों ने शासक दल का सर्मथन दिया। बच्चन जी उनमें से एक थे। बाद में शायद उन्हें इसका कुछ पछतावा रहा। वे इसे, इस तरह से समझाते दिखते हैं।
'एक दिन किसी ने मुझे प्रधान मंत्री निवास से फोन किया, शायद संजय ने, कि क्या मेरा नाम आपात्कालीन स्थिति के समर्थकों में दिया जा सकता है? और अगर मैं सच कहूँ तो केवल गांधी परिवार से अपनी मैत्री और निकटता के कारण मैंने फोन पर ही हामी भर दी। बाद को कई दिनों तक रेडियो और टेलीविजन के माध्यम से कई और लेखकों के साथ मेरा नाम भी इमर्जेसी के समर्थकों में प्रसारित किया गया। जहाँ तक मुझे याद है, उनमें दो प्रमुख नाम थे गुरूमुख सिंह ‘मुसाफिर’ के और सरदार जाफरी के।'

मैंने उर्मिला की कहानी बताते समय इस विषय की पहली पोस्ट पर अपने सहपाठी इकबाल का जिक्र किया था जो कि वकील है। उसे इमरजेंसी के कई कटु अनुभव रहे। अमिताभ बच्चन ने भी इमरजेंसी को समर्थन दिया था इसीलिये उसने इमरजेंसी के समय से ही अमिताभ बच्चन की पिक्चरें देखना छोड़ दिया था। मैंने एक बार पूछा कि तुम्हारे एक व्यक्ति के पिक्चर न देखने से क्या होगा। उसने कहा कि,
'कुछ नहीं, पर कम से कम एक व्यक्ति तो उसके समर्थकों में से कम हुआ। इस बारे में विरोध जताने का यही सबसे अच्छा तरीका है।'
इकबाल फिर कभी पिकचर हॉल में, अमिताभ बच्चन की पिकचरें देखने नहीं गया। मालुम नहीं अब जाता है कि नहीं। क्योंकि अब तो गांधी परिवार ने भी इमरजेंसी के बारे में अपनी गलती स्वीकार के ली और बच्चन परिवार, नेहरू-गांधी परिवार से दूर चला गया।

बच्चन जी की सातवीं पोस्ट मांस मदिरा से परहेज पर इदन्नम्मन ने टिप्पणी कर पूछा था,
'उन्मुक्त जी कया आपने इनकी जीवनी में Rudiard Kipling की कविता पढी? अगर हाँ तो बताना कैसी लगी।'
बच्चन जी अपने जीवनी के चौथे भाग में बताते हैं कि वे 'बसेरे से दूर’ को लिखते समय टूटे-गिरेपन की हालत से गुजर रहा थे और इस परिस्थिति को संभलने के लिये उन्होने किपलिंग की ‘If’ शीर्षक कविता का सहारा लिया था। हालांकि इस कविता का जिक्र मुझे उनकी जीवनी के तीसरे भाग में नहीं मिला था। उन्होने इमरजेंसी के बाद यही कविता इंदिरा गांधी को चुनाव हार जाने के बाद, उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिये भेजी थी।

मुझे यह कविता कैसी लगी?

कवितायें अक्सर गागर में सागर भरती हैं। मुझे कम समझ में आती हैं, शायद इसलिये कुछ कम अच्छी लगती हैं। मेरे विचार से किसी भी कृति का आनन्द, इस पर भी निर्भर करता है कि वह किस तरह से वह प्रयोग की गयी हो। बच्चन जी ने इस कविता का प्रयोग इमरजेंसी के बारे में जिक्र करते हुऐ लिखी है। आप खुद समझ सकते हैं मुझे यह कैसी लगी होगी।


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