Tuesday, June 27, 2006

Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री

कुछ दिन पहले सुनील जी ने 'पुरुष या स्त्री ?' नाम की एक चिट्ठी पोस्ट की। उन्होने एक दूसरी चिट्ठी भी 'मैं शिव हूँ' के नाम से पोस्ट की। उसी पर संजय जी और सृजन शिल्पी जी ने टिप्पणी की। सृजन शिल्पी जी ने बाद मे 'अर्धनारीश्वर और वाणभट्ट की आत्मकथा' नाम की चिट्ठी भी पोस्ट की। मेरा मन भी था कि इन सब पर टिप्पणी करूं, फिर लगा कि एक स्वतंत्र चिट्ठी लिखना ठीक होगा। इसलिये यह चिट्ठी पोस्ट कर रहा हूं।

कुछ लोगो को प्रकृति अलग तरह से बनाती है उन्हे मस्तिष्क तो एक लिङ्ग का देती और शरीर दूसरे लिङ्ग का। इन लोगों के अपने कष्ट होते हैं सर्जरी के बढ़ते आयाम ने इन लोगों को कुछ राहत दी है। ऐसे कुछ लोग सर्जरी करा कर अपना लिङ्ग बदल सकते हैं। सेक्स परिवर्तन कराने के बाद, इन लोगों को trans-gendered कहा जाता है। इन लोगों के भी अधिकार हैं पर हमारा समाज ऐसे लोगों की पीड़ा समझना तो दूर, इनका मजाक बनाने मे भी पीछे नहीं रहता।

कुछ साल पहले की बात है कि एक टीवी बनाने वाली कम्पनी ने अपने टीवी के विज्ञापन मे एक लड़के और लड़की को एक टीवी की दुकान मे दिखाया। लड़की सुन्दर है और लड़का उससे इश्क (flirt) करने की कोशिश कर रहा है। दुकान मे अलग- अलग कम्पनी के टीवी लगे हैं। उन सब मे एक प्रोग्राम आ रहा है जिसमे एक लड़की का साक्षात्कार हो रहा है जो कि लड़के से लड़की बनी थी। लड़की का चेहरा ढ़ंका हुआ है। अलग अलग टीवी मे लड़की का चेहरा ढ़का रहता है पर जब उस कम्पनी के टीवी के सामने पहुंचते हैं तो टीवी पर लड़की का चेहरा साफ दिखायी पड़ता है। यह टीवी वाले यह बताना चाहते थे कि उनके टीवी पर तस्वीर एकदम साफ आती है। यह लड़की वही है जो कि दुकान में है। जब लड़का उसे देखता है तो घृणा से मुंह बनाते हुऐ, उस दुकान से,
लड़की को छोड़ कर, चला जाता है।

मेरे विचार से यह विज्ञापन बहुत ओछा था। यदि इस विज्ञापन से जुड़े किसी व्यक्ति के परिवार मे ऐसा कोई सदस्य होता तो वह न तो यह विज्ञापन बनाता, न ही उसे अपनी कम्पनी के लिये मंजूरी देता। परिवार मे ऐसा कोई सदस्य होने की कोई जरूरत नहीं है, इसके लिये तो ऐसे लोगों की मुश्किलों को समझने की जरूरत है जो कि इस विज्ञापन को बनाने वाले या इस टीवी कम्पनी के पास नहीं थी।

संवेदनहीन (insensitive) इन्सान ही ऐसा कार्य करते हैं। मेरे विचार मे कोई भी कार्य करने से पहले उसे अपने ऊपर रख कर सोचने की जरूरत है, कि यदि वे उस जगह होते तो उन्हे कैसा लगता। मैंने इसके बारे मे कुछ लिखा-पढ़ी की और इसके पहले कुछ और कार्यवाही करता कि यह विज्ञापन दिखायी देना बन्द हो गया। कह नहीं सकता कि लिखा-पढ़ी का असर हुआ या उन्हे स्वयं लगा कि यह गलत है।

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