Monday, May 29, 2006

अधूरे सपने

मैने विज्ञान से स्नातक की डिग्री लेने के बाद, विज्ञान की उच्च शिक्षा के लिये, कसबे से बाहर प्रवेश लिया| सब तय भी कर लिया पर फिर पिता के कहने पर नहीं गया; लगभग ४० वर्षों से फाईलों को इधर से उधर कर रहा हूं| मन आया कुछ नया करूं - ब्लौगिंग करने की सोची: पर हिन्दी मे करूं या अंग्रेजी मे|

भारत सरकार ने कुछ समय पहले Unicode font प्रकाशित की, लगा कि हिन्दी में ब्लौगिंग की जा सकती है लगभग तीन महीने पहले हिन्दी मे ब्लौग करना शुरू किया| उस समय मैं हिन्दी चिठ्ठों के संसार से अनभिज्ञ था| मुझे नहीं मालुम था कि यह कैसी लिखी जाय फिर कुछ कोशिश और गलतियों के साथ हिन्दी मे ब्लौगिंग शुरू कर दी| कुछ समय बाद सर्वज्ञ और नारद का पता चला और नारद के द्वारा अन्य चिठ्ठेकारों का| कुछ दिनो बाद सब कुछ समान्य, पहले जैसा|

फिर एक दिन सुनीलजी ने अपने चिठ्ठे पर बचपन के सपने नाम की चिठ्ठी पोस्ट की| मालुम नहीं कि क्या हो गया: कितनी यादें, कितनी बातें - वापस आकर मन को कचोटने लगीं| कितना समय बिताया बीते हुऐ समय को याद करने मे| पर समय तो किसी की प्रतीक्षा नहीं करता वह तो वापस आयेगा नहीं, पर पुरानी बातों की यादों मे खोने के बाद लगा कि उन लोगों के बारे मे लिखूं जिनसे प्रेणना लेकर सपने देखे थे| क्या हुआ यदि मेरे सपने अधूरे रह गये, वे लोग तो अब भी प्रेणना के सोत्र हैं|

इन लोगों मे से कुछ तो मेरे परिवार के सदस्य हैं जिन्हे न तो आप जानते हैं न जानने मे दिलच्सपी रखते हैं पर ऐसे भी कुछ हैं जो कि जानी-मानी हस्ती हैं और आपने उनका नाम सुना होगा यदि नहीं तो शायद सुनना चाहिये उन्ही मे से कुछ के बारे मे बात करते हैं| शायद कोई इन चिठ्ठियों को, कहीं, कभी पढ़े और वह अपने सपने पूरे करने की ठान ले| उसे इतनी हिम्मत मिले कि वह मेरे जैसा कमजोर होकर केवल फाईल पलटने वाला न बन जाय| वह अपने सपने पूरे कर सके|

मै सबसे पहले बात करना चाहूंगा, १९६६ के नोबेल परुस्कार से स्म्मानित भौतिक शास्त्री रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे मे, जो कि बहुत समय कैलिफोर्निया इं‍स्टिट्यूट आफ टेक्नोलोजी (कैल-टेक) मे रहे और डिक के नाम से जाने जाते थे| मै उनसे कब और कैसे आबरू हुआ यह अगली बार|

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