Sunday, April 16, 2006

शान्ति रहे हमेशा, उससे चिपकी

गर्मी शुरू हो गयी है। हम लोग छत पर सोने लगे। सोने से पहिले पानी का छिड़काव, बिस्तरे पर मसहरी और बगल में सुराही का पानी। नयी, नयी सुराही के पानी में भी एक भीनी भीनी सोनी सी महक है,स्वाद भी अलग है। पूरा साल इसी के इन्तज़ार में बीतता है।

चांद अभी निकला नहीं है तारे चमक रहे हैं उपर ओरायन तारा समूह दिखायी पड़ रहा है। मालूम नही क्यों इसे शिकारी (Orion the Hunter) से चिन्हित किया जाता है। इसके जो तारे आसानी से पहचाने जाते हैं वे तो तितली की तरह दिखायी पड़ते हैं।

मैं इन्ही तारों के बारे मैं सोच रहा था कि मुन्ने कि मां भी आ गयी मैने कहा कि देखो तुम्हारा वायदा भी पूरा कर दिया धर्म दास जी की अनुगूंज के लिये चिठ्ठी लिख कर पोस्ट भी कर दी अब तो खुश हो।

'अच्छा किया कई दिन से कह रहे थे। सब बातें टाईप कर दी थी न, कुछ छूटा तो नहीं।' वह बोली।

'हां जैसा उन्होने कहा वैसा ही टाइप कर दिया था। तुम्हे कोई शक है क्या?' मैने झुझंलाते हुऐ कहा।

'नहीं, नहीं मैं तो ऐसे ही कह रही थी', फिर कुछ रुक कर बोली, 'एक बात बताओ, धर्म दास जी के मुताबिक कर्म स्थल ही पूजा स्थल है। जो वहां मन लगायेगा उसके घर मे सुख शान्ति रहेगी।'

मैंने हामी भरी।

वह बोली,
'पर एक बात समझ में नहीं आयी। तुम्हारे कमप्यूटर से कोई मतलब नही, न कमप्यूटर इन्जीनियर हो, न ही कमप्यूटर प्रोग्रामर हो। आफिस में भी कमप्यूटर का कोई काम तुम्हारे पास नही है। तुम काम की जगह जब देखो कमप्यूटर पर रहते हो। तुम काम के अलावा सब करते हो। फिर भी अपने घर में इतनी सुख और शान्ति क्यों है। बगल के घरों में देखो कितना रोना-धोना, मार-पीट मची रहती है।'

बात सही थी। मेरा काम औफिस में फाईलों को इधर उधर करना है कमप्यूटर से उसका सम्बन्ध टाईपिंग के अलावा कोई नही है। मैं अपने काम में कुछ कम, कम्पयूटर पर ज्यादा ध्यान देता हूं। होली पर कामचोर की उपाधि पर मेरा कॉपीराईट है पर घर में काफी सुख, शान्ति है।

मेरी और मुन्ने की मां की कभी लड़ाई नहीं हुई। मैं मुन्ने की मां कि सब बात मान लेता हूं। मुन्ना, मुन्नी किस स्कूल में जायें, क्या करे, क्या पढ़े, घर में क्या ठीक है क्या ठीक नही है सब उसकी मुताबिक चलता है? मैं इस घर का बौस हूं क्योंकि मुन्ने की मां ने मुझे यह कहने कि अनुमति दे रखी है। घर में उसी की चलती है बगल के घरों मे शायद यह नियम नहीं है, इसीलिये अशान्ति। मैंने सोचा कि उसे बता दूं, खुश हो जायगी।

'मुन्ने की मां, मुन्ने की मां' मैने पुकारा। उधर से कोई जवाब नहीं मिला। मैंने उसकी तरफ देखा, वह सो रही थी पर लगा कि वह मुस्करा रही है।

क्या सपना देख रही होगी। जरूर शारुख खान से मिल रही होगी। शारुख खान उसके चहेते कलाकार है। उसने 'दिल वाले दुलहनियां ले जायेंगे' अनगिनत बार देखी होगी। कभी कभी तो मुझे शारुख खान से जलन होती है। चांद निकल रहा था कुछ रोशनी थी मुझे लगा कि उसकी मुस्कान कुछ बढ़ गयी।

क्या वह कोई और सपना देख रही है। कहीं वह धर्मदास जी जब मुझे अनुगूंज के लिये चिठ्ठी बोल रहे थे तब का दृश्य तो सपने मैं नही देख रही है। मुझे वह दृश्य कुछ याद पड़ रहा है। धर्मदास जी इस तरह कि एक लाईन भी लिखने को कह रहें हैं:
'मैं वह आचरण भी हूं ,
जो माने पत्नी की हर बात।'

धर्म दास जी की अनुगूंज के लिये पोस्ट हुई चिठ्ठी में यह लाईन नहीं लिखी है। मैने मुन्ने की मां कि तरफ देखा तो लगा कि उसकी मुस्कराहट कुछ और बढ़ गयी है।

धर्मदास जी ने यह लाईन बोली तो थी, पर मैने क्यों नहीं लिखी। क्या भूल गया था पर धर्म दास जी की बात कैसे भूली जा सकती है यह तो अधर्म होगा। क्या मैने इस लाईन को जान-बूझ के टाईप नहीं किया? चांद पूरा निकल आया। रोशनी काफी हो गयी है - पुर्णमासी है न आज। मैने मुन्ने की मां तरफ देखा वह निश्चित तौर पर खिल-खिला कर हंस रही है।

आपका क्या राय है क्या कोई सपने देखते हुये खिल-खिला कर हंस सकता है। जहां तक लाईन जानबूझ कर न टाईप करने की बात है उसमे तो आप तो मेरे साथ हैं न। आपको तो नही लगता कि मैने जानबूझ के वह लाईन टाईप नहीं की।

अब धर्मदास जी यदी कुछ कह देगें वह तो हमारा धर्म ही हो जायेगा - पर पत्नी की हर बात मानना, यह तो पुरषों के स्वाभिमान की बात है।

आज तो मुन्ने की मां खिल-खिला कर हंस रही है पर एक दिन वह बहुत गुस्सा हो गयी थी - वह अगली बार

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